मेरी पहली मैराथन ने मुझे अपने शरीर को नए नज़रिये से देखना सिखाया। दूसरी ने मुझे जज़्बा सिखाया। और हाल ही में दौड़ी गई 10 किमी ने मुझे याद दिलाया—मैं अब भी वही इंसान हूँ जो आगे आता है।
जीतते रहना ज़रूरी नहीं। शुरुआत करते रहना ज़रूरी है।
अगर आपने कभी दौड़ने का सपना देखा है—छोटा शुरू कीजिए। स्ट्रेच कीजिए, टहलिए, जॉग कीजिए। आपकी चाल ही आपकी कहानी बन सकती है।
चाहे 5 किमी हो या 42 किमी—आपकी यात्रा पूरी तरह काबिल है।